एक नारी की ज़ुबानी

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एक नारी की ज़ुबानी

कहने को दुनिया बदल रही है
मै तो महज एक सोच बदलने आई हूं
अपने भावों को कुछ यूं बतलाने आई हूं
मै भी एक नारी हूं, इसलिए
अपनी परिस्थिति चंद पंक्तियों में दर्शाने आई हूं।

आधुनिकता के जमाने में भी
पाबंदी हम पर बहुत कड़ी लगाई है, आजादी होते हुए भी
जंजीर हमारे पाव में पहनाई है
सिर्फ इसलिए क्योंकि इस धरती पर हमने एक बेटी के रूप में जन्म पाई है (२)
सरेआम बिकती है हमारी आबरू
है दुनिया क्या ईमान तूने पाई है
लक्ष्मी के रूप में पूजते हो जिसे
खिलौने से भी सस्ती उसकी कीमत लगाई है
वाह! रे दुनिया क्या ईमान तूने पाई है।
बदलकर देखो सोच अपनी
कमी कहां तुमने पाई है
लक्ष्मीबाई जन्मी जिस भूमि पे
वाहा बेटियों के सुरक्षा पर आंच आई है (२)
लालत है तुझपे दुनिया
जो अब तक तुमने आवाज़ ना उठाई है
इतना बड़ा देश का संविधान होते हुए भी (१)
गुनेगार को सज़ा अब तक ना हो पाई है
बदलकर देखो अपनी सोच को दुनिया
कमी कहां तुमने पाई है
कमी कहां तुमने पाई है।।

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About the Author: Shrishti Shrivastava

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