ख़ुश हु मैं अपने छोटी सी जिंदगी मे
गरीब हु मैं मुझे गरीब ही रहने दो
नहीं आती मुझे अमीरों वाली चाल बाजी
मुझे तो बस एक सरीफ ही रहने दो
पैसो के पीछे भाग कर अपने जमीर भूलने वाले से बेहतर है
मुझे रोटी कि कदर करने वाला एक भूखा मरीज ही रहने दो
बड़े लोग तो छोटी छोटी बातो पे भूल जाते है बात करने का लहजा
मुझे तो बस अपने हक के लिए लड़ने वाला बत्तमीज़ ही रहने दो
नहीं भाटी मुझे सुट-बूट वाली चाल ढाल
मेरे बदन पे एक फ़टी कमीज़ ही रहने दो
ख़ुश हुँ मैं अपने मासूम सी जिंदगी मे
गरीब हुँ मैं मुझे गरीब ही रहने दो
Contentment is natural wealth, luxury is artificial poverty.
Very emotional poem!
Moving poem. Contentment is a divine gift – there are but a few who are capable to reach it. I like your poem.