Sacchai

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सभी है बेखबर ना है खबर क्या फैली है खबर
क्यों बिक रहे है छोटे बच्चे खुद रहे क्यों है कबर?
मेला है छोटे जिस्मो का पैसो की बारिश हो रही है
चीख मचती हर गली और हर गली उठती शरर ।

कलम थामने की इस उम्र मै थामते है गम
ना आंखो मै है बचपना, नशा और मरते है दम,
उम्र है कम, नजाने कैसा चेहरा देखा दुनिया का
पर नौबत अाई देखने की जिसके ज़िम्मेदार हम।

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Mrityunjay Jha

About the Author: Mrityunjay Jha

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